Tuesday, 21 June 2011
Friday, 17 June 2011
VIGYAN PRASAR EduSAT Network Proposed schedule for the month of June 2011
VIGYAN PRASAR EduSAT Network Proposed schedule for the month of June 2011
Participating SIT
1. Monday 20.6.11 Video Show Kahani dharti ki
2. Thursday 23.6.11 Training programme on Disaster management Earthquake
3. Friday 24.6.11 Technical checking Hindi/ English Ms. Rita Technical person
4. Monday 27.6.11 Video Show Kahani dharti ki
5. Wednesday 29.6.11 Career Guidance in
Biological Science
Participating SIT
1. Monday 20.6.11 Video Show Kahani dharti ki
2. Thursday 23.6.11 Training programme on Disaster management Earthquake
3. Friday 24.6.11 Technical checking Hindi/ English Ms. Rita Technical person
4. Monday 27.6.11 Video Show Kahani dharti ki
5. Wednesday 29.6.11 Career Guidance in
Biological Science
भारत और रूस बनाएंगे हाइपरसोनिक मिसाइलें
12.06.2011, 18:27 |
© Flickr.com/IncMan/cc-by-sa 3.0 |
रूसी-भारतीय संयुक्त उपक्रम ब्रह्मोस एयरोस्पेस एक वर्ष के भीतर आवाज़ से भी तेज़गति से उड़ने वाली हाइपरसोनिक मिसाइलों "ब्रह्मोस-2" का निर्माण शुरू कर देगा। यह बात ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी के सह-निर्देशक अलेक्सांदर मक्सीचोव ने रविवार को नई दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कही।
रूसी-भारतीय मिसाइल ब्रह्मोस की पहली उड़ान की 10वीं वर्षगाँठ को समर्पित एक सम्मेलन के मौके पर अलेक्सांदर मक्सीचोव ने कहा- "यह पूरी तरह से एक नई मिसाइल होगी।" उन्होंने कहा कि संयुक्त उपक्रम अगले साल ब्रह्मोस मिसाइलों का विमानों से प्रक्षेपण करने का इरादा रखता है।
एक योजना के अनुसार एसयू-30MKI विमान सहित विभिन्न प्रकार के विमानों को ऐसी मिसाइलों से लैस किया जाएगा। इससे पहले, ब्रह्मोस कंपनी के प्रमुख एस. पिल्लै ने कहा था कि विमानों को मिसाइलों से लैस करने का काम वर्ष 2013 में पूरा किया जा सकता है। भारत की नौसेना, थलसेना और वायुसेना के पास पहले से ही ब्रह्मोस मिसाइलें मौजूद हैं।
परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए जोख़िम उठाना उचित है
16.03.2011, 15:21 |
© www.atomstroyexport.ru |
रूस और भारत परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण करने के लिए दिल्ली को 4 अरब डॉलर का ऋण देने की संभावना पर सोच-विचार कर रहे हैं। इस बात की जानकारी मंगलवार को रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पूतिन ने दी है। उन्होंने यह भी कहा कि रूस पहले ही भारत को 2.6 अरब डॉलर का ऋण प्रदान कर चुका है। इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए रेडियो रूस के समीक्षक गिओर्गी वानेत्सोव ने लिखा है-
यह बात शायद कई लोगों को अजीब लग रही होगी कि जापान में आए भूकंप के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हुए विस्फोटों के बाद भी दुनिया में बड़े पैमाने पर नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण करने की बात की जा रही है। निश्चित रूप से इस काम में हमेशा से ही जोखिम तो रहा है लेकिन भारत, चीन, तुर्की, पाकिस्तान, वियतनाम और दुनिया के कई ऐसे दूसरे देश क्या करें जिनके पास प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन बहुत कम हैं? ये देश परमाणु ऊर्जा पैदा करके ही बिजली के क्षेत्र में अपनी आवश्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं। आधुनिक तक्नोलौजी काफ़ी विकसित और सुरक्षित बनती जा रही है। इसकी बदौलत परमाणु बिजलीघरों में दुर्घटनाओं के जोखिम बहुत कम हो गए हैं और भविष्य में और भी कम हो जाएँगे। रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पूतिन ने इसी बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा-
जापानी परमाणु बिजलीघर और इन में लगे उपकरण चालीस साल पुराने हैं। आजकल दुनिया में इनसे कहीं बेहतर परमाणु रिएक्टर मौजूद हैं। यह बात साबित कर दी गई है कि परमाणु ऊर्जा के उत्पादन को बेहद सुरक्षित बनाया जा सकता है। आधुनिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा विशेष ढंग से की जाती है। इसलिए जापानी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों जैसी स्थिति उत्पन्न होने की कोई सम्भावना नहीं है।
आजकल दुनिया भर में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए अलग अलग चरणों पर 62 परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा भविष्य में 300 से अधिक नए रिएक्टरों के निर्माण के लिए परियोजनाओं पर चर्चा की जा रही है। रूस, चीन, भारत और दुनिया के कुछ अन्य देशों में राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा व्यवस्था के आधुनिकीकरण के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। भारत, वियतनाम, तुर्की और बुल्गारिया में जो परमाणु बिजलीघर बनाए जा रहे हैं रूस उनके निर्माण में सहायता कर रहा है। यह बात अभी स्पष्ट नहीं है कि इन कार्यक्रमों में किस हद तक परिवर्तन किया जा सकता है। लेकिन रूस और चीन जैसे अग्रणी देशों ने इस बात की स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि वे जापान में घटी दुर्घटना के बावजूद नई पीढ़ी के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के अपने कार्यक्रमों का त्याग नहीं करेंगे।
निकट भविष्य में भारत के दक्षिण में रूस की तकनीकी सहायता से बनाए जा रहे कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर के पहले दो युनिट चालू हो जाएँगे जिनमें से प्रत्येक की उत्पादन क्षमता एक-एक हज़ार मेगावाट होगी। इन दो युनिटों के अलावा अगले पांच से सात साल में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से भारत में 16 और परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया जाना है। नए परमाणु बिजलीघरों को सबसे आधुनिक और उन्नत उपकरणों से लैस किया जाएगा और सुरक्षा की पूरी गारंटी दी जाएगी। अन्य बातों के अलावा कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर के पहले दो यूनिटों में तीसरी पीढ़ी के रिएक्टर स्थापित किए गए हैं जो बहुत ही उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस संबंध में रूस की रोसएटम कंपनी के संचालक सेर्गेय किरिएन्का ने कहा-
कुडनकुलम में एक अद्वितीय सुरक्षा प्रणाली स्थापित की जा रही है। इस प्रकार की सक्रिय और निष्क्रिय सुरक्षा प्रणाली इससे पहले कहीं भी स्थापित नहीं की गई है। नए परमाणु बिजलीघरों में अति आधुनिक और उन्नत किस्म के उपकरण लगाए जा रहे हैं जो उनके काम को भी सुरक्षित बनाते हैं।
यह बात भी भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के संचालन को सुरक्षित बनाती है कि वे ऐसे इलाकों से बहुत दूर स्थित हैं जहाँ भूकंप आने की संभावना बनी रहती है। इन परमाणु बिजलीघरों में सुरक्षा की स्थिति पर मुंबई स्थित एक विशेष उपग्रह केंद्र द्वारा ऑनलाइन निग़ारानी रखी जाती है।
भारत ने रूस के साथ मिलकर एक संयुक्त सेटलाइट का प्रक्षेपण किया
20.04.2011, 14:15 |
© Bruce Tuten / flickr.com |
भारत ने रूस के साथ मिलकर एक संयुक्त सेटलाइट “यूथसैट” का प्रक्षेपण किया। इस सेटलाइट के ज़रिए पृथ्वी पर ऐसी जानकारी भेजी जाएगी जिस से पता चलेगा कि सौर गतिविधि में बदलाव से पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी परतों पर क्या असर पड़ता है। इस परियोजना में मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी रूसी पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जिन्होंने इस सेटिलाइट के लिए एक्स-रे और गामा-किरण बहाव मापक यंत्र “सोलराद” का निर्माण किया है। इसके अलावा “यूथसैट” सेटलाइट में आयन मापक यंत्र तथा एयरग्लो यानी पृथ्वी के वायुमंडल के चमक की छवियों को प्राप्त करने के लिए एक यंत्र भी लगा हुआ है। दक्षिणी भारत में स्थित आंध्र यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी “यूथसैट” सेटलाइट से प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण कर रहे हैं।
रूस और भारत के बीच व्यापार बढ़ाने की ज़रूरत है
सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहे पीटर्सबर्ग अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक फ़ोरम के अन्तर्गत 'रूस-भारतीय व्यापारिक बातचीत' में बोलते हुए रूस के उपप्रधानमंत्री सेर्गेय इवानोव ने कहा कि रूस और भारत के बीच आपसी व्यापार में दिखाई दे रही ढील को दो देशों के व्यापारियों को मिलकर दूर करना चाहिए और मशीन-निर्माण, औषध-निर्माण तथा विमान-निर्माण के क्षेत्र में हमें आपसी सहयोग बढ़ाना चाहिए। हालाँकि आज भी यह कहा जा सकता है कि दो देशों के बीच व्यापारिक-आर्थिक सम्बन्ध सफ़लतापूर्वक विकसित हो रहे हैं। हम सूचना व संचार तक्नोलौजी, भारी मशीन-निर्माण तथा औषध-निर्माण के क्षेत्र में कुछ परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। लेकिन पिछले वर्ष के अंत में आपसी व्यापार में कुछ कमज़ोरी दिखाई दी है, जिसकी वज़ह से चिंता हो रही है। उन्होंने कहा कि इसका कारण शायद दुनिया में कीमतों में हो रही वृद्धि है। रूस के उपप्रधानमंत्री ने कहा- हमें आपसी व्यापार की दिशाएँ बदलने की कोशिश करनी चाहिए।
सेर्गेय इवानोव ने बताया कि रूस भारत को आम तौर पर मशीन-निर्माण उद्योग से सम्बन्धित मशीनों और यंत्र-उपकरणों का निर्यात करता है। हमारे व्यापार में तेल और गैस का हिस्सा सिर्फ़ पाँच प्रतिशत है। उसी समय रूस में भारत की करीब 800 तरह की दवाइयाँ पंजीकृत हैं और वे रूस में काफ़ी लोकप्रिय हैं क्योंकि उनकी क़ीमत कम है और क्वालिटी बढ़िया है। रूस के उपप्रधानमंत्री ने कहा औषधि क्षेत्र में रूस और भारत व्यापक स्तर पर सहयोग कर सकते हैं। भारतीय व्यापारियों को न केवल रूस को दवाइयों की आपूर्ति बढ़ाने में दिलचस्पी दिखानी चाहिए, बल्कि रूस में संयुक्त औषधि-निर्माण कारखाने भी खोलने चाहिए ताकि रूसी विशेषज्ञों द्वारा खोजी जाने वाली नई दवाओं का भी मिलकर उत्पादन किया जा सके। सेर्गेय इवानोव ने भारत में बड़ी रूसी कम्पनी "ए०एफ़०के० सिस्तेमा" के सफ़ल काम की चर्चा की, जो MTS के नाम से भारत में मोबाइल फ़ोन सुविधाएँ उपलब्ध कराती है। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा, मोटर-निर्माण, सड़क-निर्माण तथा मेट्रो-निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय रूसी कम्पनियाँ भी भारत में बड़ी सक्रियता के साथ सफ़लतापूर्वक काम कर रही हैं। सेर्गेय इवानोव ने कहा कि रूस और भारत लड़ाकू-विमानों के निर्माण के क्षेत्र में भी अच्छा सहयोग कर रहे हैं और अब इस सहयोग को नागरिक विमान निर्माण क्षेत्र में विकसित करना चाहिए।
20 करोड़ की कार से भारत पहुंची एस्टन मार्टिन
हॉलीवुड फिल्मों में एस्टन मार्टिन की कारें जेम्स बॉन्ड चलाते आए हैं. अब एस्टन मार्टिन भारी जेबों के साथ दुनिया भर के शौक पालने वाले भारतीयों रईसों को भी बॉन्ड जैसा फील देने की तैयारी में हैं. शुक्रवार को एस्टन मार्टिन ने दुनिया में तेजी से उभरते भारतीय कार बाजार में एक साथ तीन मॉडल उतारने का एलान किया.
मुंबई में एस्टन मार्टिन चीफ कमर्शियल अफसर ने कहा, ''भारत हमारे लिए एक नए मौके की तरह है.'' कंपनी भारत में 1.55 करोड़ रुपये वाली V8 वैंटेज और 2.15 करोड़ रुपये की रैपिडी उतारेगी. सबसे महंगा मॉडल वन-77 होगा जिसकी शोरूम कीमत 20 करोड़ रुपये होगी. टैक्स आदि मिलाकर यह गाड़ी करीब 22 करोड़ की बैठेगी.
कंपनी का कहना है कि आगे और भी मॉडल भारत में उतारे जाएंगे. मुंबई में एस्टन मार्टिन के डीलर ललित चौधरी कहते हैं, ''भारत बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है, इसेनजरअंदाज नहीं किया जा सकता.'' डीलर से दूर एस्टन मार्टिन के अधिकारियों ने भारत में कितनी बिक्री होगी, इसका अंदाजा लगाने से इनकार कर दिया.
एस्टन मार्टिन अपने 97 साल के इतिहास में अब तक 55,000 कारें ही बेच सकी है. कंपनी को उम्मीद है कि कुछ कारें भारत में भी बिकेंगी और उसकी सेल में इजाफा होगा. एस्टन मार्टिन की स्थापना 1914 में हुई थी. फिलहाल 42 देशों में एस्टन मार्टिन के 134 डीलर हैं.
सेहत से ज्यादा कार का ख्याल रखते हैं अमेरिकी
करीब 70 फीसदी अमेरिकी कहते हैं कि वह अपनी कार का ख्याल रखना ज्यादा आसान समझते हैं बनिस्बत अपनी सेहत का. एक सर्वे से ये रोचक बातें सामने आई हैं. सर्वे में शामिल 40 फीसदी लोग कहते हैं कि वे अपनी सेहत से ज्यादा अपनी कार से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना पसंद करेंगे.
नेशनल एसोसिएशन फॉर स्टॉक कार ऑटो रेसिंग के ड्राइवर टेरी लेबोनेट कहते हैं, "कई पुरुषों को हेल्थ कराने से ज्यादा आसान गाड़ी चलाना लगता है." लेबोनेट का नाम नेशनल एसोसिएशन फॉर स्टॉक कार ऑटो रेसिंग के शीर्ष 50 ड्राइवरों में शामिल हैं. वह इस खास सर्वे के प्रवक्ता हैं.
यह सर्वे पुरुष के स्वास्थ्य से संबंधित एक पत्रिका और दवा कंपनी ने कराया है जिसका मकसद पुरुषों को डॉक्टर के पास जाने के लिए प्रोत्साहित करना है. 45 से 65 वर्ष की उम्र के बीच के 501 पुरूष और उनकी पत्नियों से इस सर्वे में सवाल किए गए. पता चला कि 28 फीसदी पुरूष डॉक्टर के पास नियमित रूप से नहीं जाते हैं.
वहीं सर्वे में शामिल किए गए पुरूषों की 40 फीसदी पत्नियों के मुताबिक वे अपने पति या साथी की सेहत को लेकर चिंता करती हैं. इतनी ही महिलाओं ने कहा है कि वे अपनी सेहत से ज्यादा अपने पति या साथी की सेहत की चिंता करती हैं.
एप्पल का सतरंगी बादलः आईक्लाउड
पहले से कहीं दुबले दिख रहे जॉब्स जब हर बार की तरह इस बार भी पूरी बाजू वाली काली टी शर्ट और डेनिम की जीन्स में स्टेज पर पहुंचे, तो हॉल में जमा करीब पांच हजार लोगों ने खड़े होकर और तालियां बजा कर उनका स्वागत किया.
आईक्लाउड ऐसा एप्लीकेशन है, जिससे एप्पल के सभी उपकरण एक साथ अपडेट किए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर आईफोन का कोई कांटैक्ट अपडेट किया जाता है, तो यह सर्वरों में रिकॉर्ड हो जाएगा और इसके बाद खुद ब खुद आईपैड या मैकबुक जैसे दूसरे उपकरणों को भी अपडेट कर देगा. यह सारा काम वायरलेस तरीके से होगा और जाहिर है कि इसमें इंटरनेट की मदद होगी.
आम तौर पर किसी एक उपकरण को अपडेट करने के बाद किसी दूसरे उपकरण में स्टोर उसी डाटा को अलग से अपडेट करना होता है. लेकिन आईक्लाउड ने इस मुश्किल को हल कर दिया है.
छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी बातें
होबअल्लाह का कहना है कि इसके अलावा लोगों को छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि ऊर्जा की खपत को कम किया जा सके. ठंडे देशों में खिडकियां ऐसी दिशा में बनाई जाएं जहां से धूप सबसे अधिक आती हो और गर्म देशों में ऐसी दिशा में जहां छाया रहती हो. "आप हर जगह एक ही तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर सकते. आप अगर सोचें कि जर्मन तकनीक को बुर्किना फासो ले जाएंगे और वहां भी उसी रफ्तार से काम करेंगे तो ऐसा तो नहीं हो सकता, लेकिन बुर्किना फासो जा कर यह तो समझा ही सकते हैं कि इमारतों पर शीशे लगाना कम कर दें तो एयर कंडिशनर की खपत कम हो सकेगी."
सीमा से अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड विसर्जित करने पर लोगों को कार्बन क्रेडिट खरीदने होंगे. कार्बन क्रेडिट यानी पैसा दे कर और कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की अनुमति खरीदनी होगी. इस तरह का सिस्टम कारखानों के लिए पहले से ही इस्तेमाल किया जा रहा है. अब इसे घरों पर भी लागू किया जाएगा.
प्रदूषण कम करने के लिए नये घर |
गर्मी से निपटने के लिए एसी और सर्दी से निपटने के लिए हीटर - ये चीजें हमारी रोजमर्रा की जरूरत बन चुकी हैं. हमें इन्हें इस्तेमाल करते समय इस बात का एहसास नहीं होता कि हमारी ये जरूरतें पर्यावरण के लिए कितनी हानिकारक है. अगर हमें कोई ऐसी चीज मिल जाए जिसे देख कर यह पता लग सके कि हर दिन हम पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं तो शायद इनकी खपत को कम कर सकें. संयुक्त राष्ट्र ने एक ऐसी ही तकनीक को मंजूरी दी है. यह मीटर यह भी बताएंगे कि उस इमारत से पर्यावरण में कितना कार्बन डाई ऑक्साइड विसर्जित हुआ है.
क्या है कार्बन मेट्रिक
कार्बन मेट्रिक नाम की इस तकनीक पर काम कर रहीं संयुक्त राष्ट्र की मारिया एटकिंसन बताती हैं, "कार्बन मेट्रिक का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि इमारतों के मालिकों को इस बारे में पता चल सके कि वे ऊर्जा की कितनी खपत कर रहे हैं और वातावरण में कितनी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है. वे जान सकें कि क्या मैं सीमा में रह कर खपत कर रहा हूं या वातावरण को नुकसान पहुंचा रहा हूं."
यूरोपी
जून माह की पहेली
हमारी जून माह की पहेली का सवाल भी इसी विषय से जुड़ा है. दीजिये इस आसान से सवाल का जवाब और जीतिए कलाई घड़ी व आइपॉड जैसे पुरस्कार.
सवाल: इस साल छठा वुमेन्स फुटबॉल वर्ल्ड कप किस देश में खेला जा रहा है?
ए. जर्मनी
बी. अमेरिका
सी. नॉर्वे
अपने जवाब 30 जून 2011 तक डाक, ईमेल या एसएमएस के जरिए हमें भेज दें. विजेताओं के नाम हमारी वेबसाइट पर जारी किए जाएंगे. सभी विजेताओं को पत्र से सूचना भी दी जाएगी. आप अपना नाम और पता साफ साफ अक्षरों में लिखें.
dw hindi
विज्ञानं प्रसार एज्युसेट नेटवर्क समर सायंस फेस्टिवल
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