Saturday, 21 January 2012

कम्प्यूटर और स्मार्टफ़ोन का ज़्यादा इस्तेमाल पाग़लपन की निशानी


कम्प्यूटर और स्मार्टफ़ोन का ज़्यादा इस्तेमाल पाग़लपन की निशानी

विषय: यह बात दिलचस्प है (283 टिप्पणियाँ)
Radio Russ : Voice of Russia 
17.01.2012, 10:27
वैज्ञानिकों का कहना है कि आज के हमारे इस ज़माने में जो लोग सोशल साइट्स और ऑन लाइन सम्पर्क के लिए हमेशा बेचैन रहते हैं और जिनका काम इनके बिना नहीं चलता, उन लोगों के दिमाग़ में भी बिल्कुल वही प्रक्रियाएँ घटती हैं, जो प्रक्रियाएँ शराबियों और नशेड़ियों के दिमाग़ के भीतर घटती हैं। ये वे लोग हैं, जिन लोगों के पास स्मार्टफ़ोन हैं और वे  बुरी तरह से उन पर निर्भर हो चुके हैं यानी उनके दिमाग़ में हर समय बस, स्मार्टफ़ोन ही रहता है, उन पर स्मार्टफ़ोन का नशा इतना ज़्यादा हॉवी हो गया है कि वे किसी और चीज़ के बारे में कुछ सोच ही नहीं सकते हैं। कहना चाहिए कि यह नए ज़माने का नया नशा है।

अगर आप भी अपने स्मार्टफ़ोन को और उसकी लगातार बजने वाली घंटी को लेकर बेचैन रहते हैं तो आपको आराम की ज़रूरत है। आप अभी समाज के लिए उपयोगी हैं, आप पूरी तरह से स्मार्टफ़ोन के नशे में डूबे नहीं हैं। लेकिन यदि आप इस बात पर चिड़चिड़े और बेचैन हो जाते हैं कि आपके फ़ोन पर कोई मैसेज क्यों नहीं आया, आपको कोई फ़ोन क्यों नहीं कर रहा है, तो आपको भी स्मार्टफ़ोन का नशा चढ़ चुका है, आप भी नशेड़ी हो चुके हैं।

इंगलैंड की वॉरचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों एक दिलचस्प अनुसंधान किया। उन्होंने छात्रों से लेकर व्यापारियों और अफ़सरों तक उन सैकड़ों लोगों से बात की, जो आईफ़ोन और ब्लैकबैरी फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं। पता लगा कि ये सभी लोग लगातार तनाव में जीते हैं। ये लोग लगातार अपनी इलैक्ट्रोनिक पोस्ट की जाँच करते रहते हैं, सोशल साइट्स में बैठे रहते हैं और अपने काम से जुड़ी ख़बरें पढ़ते रहते हैं। वे लोग जो पल-पल में ऐसा करते हैं, उनके दिमाग़ के भीतर हर समय बहुत ज़्यादा तनाव बना रहता है। उनकी मस्तिष्क-तंत्रिका हर पल एक झनझनाहट-सी महसूस करती रहती है। उन्हें हर पल यही लगता रहता है कि उनके टेलिफ़ोन की घंटी घनघना रही है या उनकी जेब में रखा टेलिफ़ोन कँपकँपा रहा है, मानो उन्हें किसी से कोई संदेश मिला हो।

इस अनुसंधान के संचालक रिचर्ड बॉलिंग का कहना है कि यदि किसी कम्पनी के कर्मचारी लगातार इस तरह के तनाव में रहेंगे तो शायद ही वह कम्पनी आगे विकास कर पाएगी। इसलिए कम्पनियों के मालिकों और अफ़सरों को यह कोशिश करनी चाहिए कि उनके कर्मचारियों के मोबाइल फ़ोन समय-समय पर बंद रहें।

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के इस अनुसंधान की पुष्टि चीन के वैज्ञानिकों ने भी की है। उन्होंने भी अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है कि इंटरनेट पर आदमी की निर्भरता वैसी ही होती है, जैसेकि किसी शराबी को हर समय शराब की ज़रूरत होती है और नशेड़ी को नशे की। उस आदमी का मस्तिष्क, जो इंटरनेट के बगैर एक घंटा भी नहीं गुज़ार सकता, वैसे ही सक्रिय रहता है, जैसे कोकोइन का सेवन करने वाले व्यक्ति का मस्तिष्क। उसे भी हर समय नई डोज़ की ज़रूरत पड़ती है। और यह ज़रूरत धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर की स्थाई माँग बन जाती है। यदि ऐसे आदमी के स्मार्टफ़ोन की बैटरी डाउन हो जाती है तो उस आदमी का शरीर और दिमाग़ झनझनाने लगता है, भयानक विचार उसका पीछा करने लगते हैं, वह घबराहट महसूस करने लगता है, उसे पसीना आने लगता है और उसकी उँगलियाँ फ़ोन के बटन दबाने के लिए बेचैन होने लगती हैं और हरकत करना शुरू कर देती हैं जैसे फ़ोन पर कोई संदेश टाईप कर रही हों।

वैज्ञानिकों का मानना है कि आज हर दसवाँ इंटरनेट उपयोगकर्ता इस झमेले में फ़ँस चुका है। ऐसे लोगों का पता तुरन्त लगाया जा सकता है। ये लोग मॉनीटर पर घटने वाली घटनाओं के इतनी बुरी तरह से आदी हो चुके हैं कि पूरे-पूरे दिन बिना कुछ खाए-पीए कम्प्यूटर पर या अपने स्मार्टफ़ोन पर बैठे रहते हैं। उन्हें अपने खाने-पीने, नहाने-धोने, ओढ़ने-बिछाने की भी कोई सुध-बुध नहीं रहती है। चीन के मनोवैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना है कि इंटरनेट पर निर्भर हो चुके इन लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से रोगी माना जाना चाहिए और इनके रोग का अलग से निदान और इलाज किया जाना चाहिए। चाहे  ये लोग  ख़ुद को रोगी मानें या न मानें, लेकिन इन लोगों को इलाज कराने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।

ब्रिटेन में तो ऐसे निशुल्क क्लिनिक काम भी करने लगे हैं, जहाँ इंटरनेट पर निर्भर मानसिक रोगियों का इलाज किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि आम तौर पर इंटरनेट गेम्स खेलने वाले लोग इस तरह के मानसिक रोग का ज़्यादा शिकार होते हैं। कम्प्यूटर गेम्स खेलने वाले लोग अपने खेलों में इतने ज़्यादा मगन हो जाते हैं कि वे अपने आसपास की दुनिया को भी भूल जाते हैं, अपनी पढ़ाई और काम-धंधा छोड़ देते हैं, यहाँ तक कि अपने जीवनसाथी से भी तलाक ले लेते हैं ताकि वह उसे परेशान नहीं करे। इस तरह के रोगियों की पहचान आसान है। ये लोग बुरी तरह से थके हुए दिखाई देते हैं और इनकी नींद भी गायब हो जाती है क्योंकि ये दिन-रात कम्प्यूटर पर बैठे रहते हैं।

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