Sunday 30 May, 2010

Radio Listening Activity Exhibition by Nanji Janjani

Global Kutch hobby Corner and Kutch Philatelic Association organised Exihibition on 7-8-9 May 2010 KACEA EXPO 10 at Jubilee Groung  in Bhuj. Mr. Nanji Janjani  participate in this exihibition and present Radio Listening Activity document, Competition letter and guidebook.

Exihibition of radio listening activity

Global Kutch hobby Corner and Kutch Philatelic Association organised 3 Day Exihibition on 23-24-25 April 2010 at Madanshinhji Library in Bhuj. Mr. Nanji Janjani has participate in this exihibition and present Radio Listening Activity document, Competion and guidebook.

Thursday 13 May, 2010

रूस में 7 मई को रेडियो दिवस मनाया जाता है।

जैसाकि हम जानते हैं - रेडियो का आविष्कार 19वीं शताब्दी के अन्त में हुआ था। 7 मई 1895 को प्रतिभाशाली रूसी वैज्ञानिक अलेक्सांदर पपोव ने पिटर्सबर्ग में रूसी भौतिकी-गणित समाज की बैठक में पहली बार अपने इस अनूठे आविष्कार को यानी दुनिया के पहले रेडियो को प्रस्तुत किया था। वे बेहद खुश थे कि वे 600 मीटर की दूरी पर अपनी आवाज़ का प्रसारण कर सकते हैं। 7 मई का वह दिन फिर इतिहास का एक पन्ना हो गया। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में रेडियो को एक अजूबा ही माना जाता था। फिर 1924 में रूस में नियमित रूप से रेडियो प्रसारण शुरू हो गया। फिर द्वितीय विश्व युद्द में हुई रूस की विजय के वर्ष में एक नया दिवस - रेडियो दिवस मनाया जाने लगा। तब से लेकर आज तक कई बार ऐसे मौके भी आए हैं, जब रेडियो का तिरस्कार किया गया। जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो लोगों ने समझा कि अब रेडियो प्रसारण बन्द हो जाएँगे। फिर जब इन्टरनेट सामने आया तो फिर से यह भविष्यवाणी की गई कि अब रेडियो प्रसारणों के दिन लद चुके हैं। लेकिन रेडियो ने दुनिया में अपनी जगह बनाए रखी और आज भी वह एक सबसे लोकतांत्रिक और सबसे प्रभावशाली तथा कारगर समाचार साधन है। वास्तव में आज रेडियो के बिना जीवन की कल्पना करना भी कठिन है। भला कौन आज ख़बरें या संगीत सुने बिना रह सकता है। तमाम तरह की छोटी बड़ी जानकारियाँ हमें तुरन्त रेडियो से मिल जाती हैं। आज रूस में करीब दो हज़ार छोटे-बड़े रेडियो प्रसारण किए जाते हैं। सिर्फ़ मास्को में ही पचास से ज़्यादा रेडियो स्टेशन काम कर रहे हैं। रेडियो रूस के अध्यक्ष आन्द्रेय बिस्त्रीत्स्की ने बताया कि विदेशी भाषाओं में विदेशी श्रोताओं के लिए रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में बड़ी कड़ी प्रतियोगिता होने के बावजूद रेडियो रूस ने श्रोताओं के बीच अपनी भरी-पूरी जगह बना रखी है और रेडियो रूस के श्रोताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

Tuesday 4 May, 2010

रेडियो तेहरान

प्रातःकालीन UTC समयानुसार शोर्ट वेव

०२:30 - 3:00 M KHZ
२२ १३७५०
२५ ११७१०
सायंकालीन UTC समयानुसार शोर्ट वेव
१४:30 - 15:30 M KHZ
२५ ११९५५
२२ १३७००

रेडियो तेहरान की हिन्दी सेवा

रेडियो तेहरान की हिन्दी सेवा 25 अप्रैल 1998 को आरंभ हुई।


रेडियो तेहरान प्रतिदिन प्रात: कालीन व सांयकालीन कार्यक्रम प्रसारित करता है।प्रात: कालीन सभा आधे घंटे की भारतिय समयानुसार आठ बजे से साढ़े आठ बजे तक और सांयकालीन सभा एक घंटे की भारतीय समयानुसार आठ बजे से नौ बजे तक प्रसारित की जाती है।प्रात: कालीन सभा में साप्ताहिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त कुरआन मजीद की तिलावत समाचार और आज का इतिहास प्रसारित किया जाता है। सांयकालीन सभा में साप्ताहिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त कुरआन मजीद की तिलावत समाचार राजनीतिक चर्चा और हमारे अख़बार कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

रेडियो रूस के श्रोता क्लबों का चौथा अखिल भारतीय सम्मेलन

रेडियो रूस के श्रोता क्लबों का चौथा अखिल भारतीय सम्मेलन पिछले साल दिल्ली स्थित रूसी विज्ञान और संस्कृति केंद्र में 15 से 16 दिसंबर तक आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के दौरान सन् 2008 में भारत में रूस को समर्पित वर्ष और सन् 2009 में रूस में भारत को समर्पित वर्ष के परिणामों की चर्चा की गई तथा रूस और भारत के बीच सहयोग को समर्पित रेडियो रूस की प्रतियोगिता के विजेताओं के नाम घोषित किए गए। इस के अलावा रेडियो रूस द्वारा आयोजित काव्य और हास्य प्रतियोगिताओं के विजेताओं तथा सबसे सक्रिय श्रोताओं और संवाददाताओं के नाम भी घोषित किए गए। अब हम आपके सामने विजेताओं के नाम प्रस्तुत करते हैं।

वर्ष 2009 के पुरस्कार विजेताः

रूस और भारत के बीच सहयोग को समर्पित रेडियो रूस की प्रतियोगिता के पुरस्कार विजेताः
1) नानजी जे. जाजाणी (अरिहंत नगर, गुजरात)
2) दलीप सिंह रोकाय (नैनीताल, उत्तराशण्ड)
3) अनिल ताम्रकार (कटनी, मध्य प्रदेश)

प्रोत्साहन पुरस्कार विजेताः
1) मितुल कंसल (कुरुक्षेत्र, हरियाना)
2) पराग पुरोहित (पुणे, महाराष्ट्र)
3) रिजवान सज्जाद (फफून्द, औरैया, उत्तर प्रदेश)

विशेष पुरस्कार विजेताः
चुन्नीलाल कैवर्त (सोनपुरी, छत्तीसगढ़)

रेडियो रूस को पत्र भेजने में मदद करने के लिए पुरस्कार विजेताः
शमसुद्दीन साकी अदीबी (मुबारकपुर आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश)

काव्य प्रतियोगिता के पुरस्कार विजेताः
1) आर. एन. सिंह (शाहजहांपुर. उत्तर प्रदेश)
2) क़मर सुल्ताना कुरैशी (नया भोजपुर, बिहार)
3) भैयालाल प्रजापति (मरुफ़पुर, उत्तर प्रदेश)

हास्य प्रतियोगिता के पुरस्कार विजेताः
1) निलेश कुमार सिंह (खनिता, बक्सर, बिहार)
2) श्रीमति नुनुदेवी (बरमा, शेखपुरा, बिहार)

पृथ्वी से परे सभ्यता की खोज dw

इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं तो वे सभ्यताएं कहां हैं, जो हमारी जैसी या शायद उससे भी बेहतर हैं? उड़न तश्तरियां कहां से आती हैं? वे कल्पनाएं नहीं हैं तो उन्हें चलाने वाले हमारे रेडियो संकेतों का जवाब क्यों नहीं देते.




अमेरिका के प्रोफ़ेसर फ़्रैंक ड्रेक को भी यही प्रश्न कुरेदा करते थे. आज से पचास साल पहले, 1960 में, जब वे तीस साल के भी नहीं थे, तब उन्होंने एक रेडियो टेलिस्कोप की मदद से पहली बार पृथ्वी से परे इतरलोकीय सभ्यता की आहट लेनी चाही. सोचा, उन्हें कुछ इस तरह की आवाज़ें सुनाई पड़ेंगी. वह बताते हैं, "मेरे पहले प्रयोग का नाम था प्रॉजेकट आज़मा. हमने दो महीनों तक सूर्य जैसे दो तारों की दिशा में रेडियो संकेतों की खोज की. लेकिन हमें कुछ नहीं मिला."



कोई सुराग नहीं



फ्रैंक ड्रेक को आज तक ऐसा कुछ नहीं मिला है, जिसके बारे में भरोसे के साथ कहा जा सकता कि वह किसी Bildunterschrift: Großansicht des Bildes mit der Bildunterschrift: दूसरी दुनिया के सभ्य लोगों की पैदा की हुई रेडियो तरंग है. रेडियो तरंगें तो ढेरों मिलती हैं, लेकिन वे आकाशीय पिंडों द्वारा स्वयं पैदा की हुई प्राकृतिक तरंगें होती हैं. तब भी, फ्रैंक ड्रेक की जिज्ञासा और लगन की कोख से विज्ञान की एक नई शाखा का जन्म हुआ, जैवखगोल विज्ञान (बायोएस्ट्रॉनॉमी) का. विज्ञान की यह नई शाखा अंतरिक्ष में संभावित जीवन की खोजबीन को समर्पित है.



फ्रैंक ड्रेक सन फ्रांसिस्को के तथाकथित सेती इस्टीट्यूट के लिए काम करते हैं. SETI का अर्थ है Search for Extraterrestrial Intelligence, यानी, पृथ्वी से परे बुद्धिधारियों की खोज. आज से पैंतालीस साल पहले 8 अप्रैल 1965 के दिन सेती ने तश्तरीनुमा बड़े बड़े रेडियो एंटेनों की सहायता से अंतरिक्ष में बुद्धिधारी प्रणियों की खोज शुरू की.



भ्रम टूटा



दो ही साल बाद, 1967 में वैज्ञानिकों को लगा कि बटेर हाथ लग गयी. तब अख़बारों की सुर्खियां कुछ इस तरह की थीं. "डॉक्टरेट कर रही महिला वैज्ञानिक ने हरे आदमियों का पता लगा लिया." "हम अंतरिक्ष में अकेले नहीं हैं." "खगोलविदों ने नई दुनिया खोज निकाली."



उस महिला वैज्ञानिक का नाम था जोसेलिन बेल. लेकिन, सारी ख़ुशी पर तब पानी फिर गया, जब पता चला कि जिस रेडियो पल्स (स्पंद) को किसी सभ्यता का संकेत समझा जा रहा था, वह वास्तव में एक मृत न्यूट्रॉन तारे से आ रहा था. न्यूट्रॉन तारे ऐसे ठोस पिंड होते हैं, जो बहुत तेज़ी से घूमते हैं और साथ ही बहुत ही कसी हुई रेडियो तरंगों की कौंध सी पैदा करते हैं. इसीलिए उन्हें पल्सर भी कहा जाता है.

मई की पहेली Deutsche Welle

आइसलैंड में ज्वालामुखी में विस्फोट के बाद कई दिनों तक उड़ानें ठप रही. हवा में चक्का जाम होने के कई दिनों बाद सबसे पहले फ़्रैंकफ़र्ट एयरपोर्ट से भरी गई उड़ानें. आपको बताना है कि किस देश में है फ़्रैंकफ़र्ट एयरपोर्ट.
ए. फ़्रांस
बी. जर्मनी
सी. डेनमार्क
आप अपने जवाब 31 मई तक डाक, ईमेल या एसएमएस से भेज दें. विजेताओं के नाम उचित समय पर "आपकी बारी आपकी बात" कार्यक्रम में बताए जाएंगे और वेबसाइट पर भी जारी होंगे. सभी विजेताओं को पत्र से सूचना भी भेजी जाएगी. आप अपना नाम और पता साफ़ साफ़ अक्षरों में लिखें.
हमारा पता जर्मनी में-
Deutsche Welle
Hindi Service
53110 Bonn /
GERMANY
Tel.No. 0049 228 429-4760
Fax No.0049 228 429-4720
भारत में-
Deutsche Welle
Hindi Service
Post Box No. 5211
Chanakyapuri,
New Delhi – 110021 / INDIA
ई-मेल का पताः hindi@dw-world.de
एसएमएस का नंबरः +91 9967354007
वॉयसमेल का नंबरः 0049 228 429 16 4176

रेडियो जापान ने जापानी भाषा

रेडियो जापान ने जापानी भाषा सिखाने के लिए“सवालों में सतरंगी जापानी”कार्यक्रम की नई वैबसाइट शुरू की है।


आप हमारे प्रश्नों के उत्तर देकर बोलचाल की जापानी के कुछ ज़रूरी बोलों का अभ्यास कर सकते हैं। अगर आपका उत्तर सही होगा तो स्क्रीन पर कुछ उभरेगा। अब देर कैसी? आप भी अपना जापानी भाषा ज्ञान परखें!

कंप्यूटर प्रिंटर से स्वास्थ्य ख़तरे में

फ़ोटोकॉपी मशीनयदी आप के पास कंप्यूटर है, तो उस के साथ जुड़ा एक प्रिंटर भी ज़रूर होगा. प्रिंटर यदि एक लेज़र प्रिंटर है, जिस में स्याही की जगह महीन पाउडर वाला एक कार्ट्रिज लगता है, तो सावधान हो जाइये! आपका स्वास्थ्य ख़तरे में है.
कंप्यूटर प्रिंटर के कार्ट्रिज वाले पाउडर को टोनर कहते हैं. टोनर के कण इतने महीन होते हैं कि कार्ट्रिज से बाहर वे बड़ी देर तक हवा में तैर सकते हैं और सांस के रास्ते से हमारे फेफड़ों में पहुंच कर हमें बीमार कर सकते हैं.
जर्मनी में फ्राइबुर्ग विश्वविद्यालय के पर्यावरण चिकित्सा और अस्पताल स्वच्छता संस्थान की एक शोध टीम ने इसी को अपनी खोज का विषय बनाया. वह जानना चाहती थी कि टोनर से उड़ने वाले अत्यंत महीन कण जब हमारे फेफड़ों में पहुंचते हैं, तो उनका क्या असर होता है? उन्होंने टोनर की धूल का फेफड़े की कोषिकाओं के कल्चर यानी संवर्ध से संपर्क कराया. परिणाम उनके लिए बहुत ही आश्चर्यजनक रहा, जैसा कि संस्थान के निदेशक प्रो. फ़ोल्करमेर्स सुंदरमान का कहना है, "फेफड़े की इन कोषिकाओं को टोनर की धूल के संपर्क में लाने पर उनके जीनों को बड़ा नुकसान पहुंचा. यह नुकसान इतना व्यापक और गहरा पाया गया कि हमें कहना पड़ेगा कि उससे कोषिकाओं के जीनों में म्यूटेशन पैदा होता है."